Wednesday, May 12, 2010

Jianism



जैन धर्म के 24 तीर्थंकर है।

इनमें से प्रथम तथा अंतिम चार तीर्थंकरों के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है किंतु उक्त के बीच के तीर्थंकरों के बारे में कम ही जानकारी मिलती हैं। निश्चित ही जैन शास्त्रों में इनके बारे में बहुत कुछ लिखा होगा, लेकिन आम जनता उनके बारे में कम ही जानती है। यहाँ प्रस्तुत है तेरह से चौबीस तीर्थंकरों का सामान्य परिचय।
(13) विमलनाथ : तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ के पिता का नाम कृतर्वेम (Kritaverma) तथा माता का नाम श्याम देवी (सुरम्य) था। आपका जन्म मघा शुक्ल तीज को कपिलपुर में हुआ था। मघा शुक्ल पक्ष की तीज को ही आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की सप्तमी के दिन श्री सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- शूकर, चैत्यवृक्ष- पाटल, यक्ष- पाताल, यक्षिणी- गांधारी।

(14) अनंतनाथजी : चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथजी की माता का नाम सर्वयशा तथा पिता का नाम सिहसेन था। आपका जन्म अयोध्या में वैशाख कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (13) के दिन हुआ। वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (14) को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कठोर तप के बाद वैशाख कृष्ण की त्रयोदशी के दिन ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। चैत्र शुक्ल की पंचमी के दिन आपको सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- सेही, चैत्यवृक्ष- पीपल, यक्ष- किन्नर, यक्षिणी- वैरोटी है।

(15) धर्मनाथ : पंद्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ के पिता का नाम भानु और माता का नाम सुव्रत था। आपका जन्म मघा शुक्ल की तृतीया (3) को रत्नापुर में हुआ था। मघा शुक्ल की त्रयोदशी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा पौष की पूर्णिमा के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की पंचमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- वज्र, चैत्यवृक्ष- दधिपर्ण, यक्ष- किंपुरुष, यक्षिणी- सोलसा।

(16) शांतिनाथ : जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हस्तिनापुर में इक्ष्वाकू कुल में हुआ। शांतिनाथ के पिता हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन थे और माता का नाम आर्या (अचीरा) था। आपने ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को दीक्षा ग्रहण की तथा पौष शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आपको कैवल्य की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- हिरण, चैत्यवृक्ष-नंदी, यक्ष- गरुढ़, यक्षिणी- अनंतमती hain.

(17) कुंथुनाथजी : सत्रहवें तीर्थंकर कुंथुनाथजी की माता का नाम श्रीकांता देवी (श्रीदेवी) और पिता का नाम राजा सूर्यसेन था। आपका जन्म वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हस्तिनापुर में हुआ था। वैशाख कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र शुक्ल पक्ष की पंचमी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वैशाख शुक्ल पक्ष की एकम के दिन सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- छाग, चैत्यवृक्ष- तिलक, यक्ष- गंधर्व, यक्षिणी- मानसी h
(18) अरहनाथजी : अठारहवें तीर्थंकर अरहनाथजी या अर प्रभु के पिता का नाम सुदर्शन और माता का नाम मित्रसेन देवी था। आपका जन्म मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन ‍हस्तिनापुर में हुआ। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा कार्तिक कृष्ण पक्ष की बारस को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। मार्गशीर्ष की दशमी के दिन सम्मेद शिखर पर निर्वाण की प्राप्ति हुई। जैन धर्मावलंबियों अनुसार उनका प्रतीक चिह्न- तगरकुसुम (मत्स्य), चैत्यवृक्ष- आम्र, यक्ष- कुबेर, यक्षिणी- महामानसी है।

(19) मल्लिनाथ : उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ के पिता का नाम कुंभराज और माता का नाम प्रभावती (रक्षिता) था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को आपका जन्म मिथिला में हुआ था। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दीक्षा ग्रहण की तथा इसी माह की तिथि को कैवल्य की प्राप्ति भी हुई। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- कलश, चैत्यवृक्ष- कंकेली (अशोक), यक्ष- वरुण, यक्षिणी- जया है।



(20) मुनिसुव्रतनाथ : बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम प्रभावती था। आपका जन्म ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की आठम को राजगढ़ में हुआ था। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा फाल्गुन कृष्ण पक्ष की बारस को ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की नवमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- कूर्म, चैत्यवृक्ष- चंपक, यक्ष- भृकुटि, यक्षिणी- विजया।
(21) नमिनाथ : इक्कीसवें तीर्थंकर ‍नमिनाथ के पिता का नाम विजय और माता का नाम सुभद्रा (सुभ्रदा-वप्र)था। आप स्वयं मिथिला के राजा थे। आपका जन्म इक्ष्वाकू कुल में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मिथिलापुरी में हुआ था। आषाढ़ मास के शुक्ल की अष्टमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कैवल्य की प्राप्ति हुई। वैशाख कृष्ण की दशमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- उत्पल, चैत्यवृक्ष- बकुल, यक्ष- गोमेध, यक्षिणी- अपराजिता।
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(22) नेमिनाथ : बावीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के पिता का नाम राजा समुद्रविजय और माता का नाम शिवादेवी था। आपका जन्म श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी को शौरपुरी (मथुरा) में यादववंश में हुआ था। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वासुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को गिरनार पर्वत पर कैवल्य की प्राप्ति हुई। आषाढ़ शुक्ल की अष्टमी को आपको उज्जैन या गिरनार पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- शंख, चैत्यवृक्ष- मेषश्रृंग, यक्ष- पार्श्व, यक्षिणी- बहुरूपिणी।

ND(23) पार्श्वनाथ : तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता का नाम राजा अश्वसेन तथा माता का नाम वामा था। आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को वाराणसी (काशी) में हुआ था। चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही कैवल्य की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- kushmaadi

(24) महावीर : चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्धमान, पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला (प्रियंकारिनी) था। आपका जन्म चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी के दिन कुंडलपुर में हुआ था। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को आपने दीक्षा ग्रहण की तथा वैशाख शुक्ल की दशमी के दिन कैवल्य की प्राप्ति हुई। 42 वर्ष तक आपने साधक जीवन बिताया। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन आपको पावापुरी पर 72 वर्ष में निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सिंह, चैत्यवृक्ष- शाल, यक्ष- गुह्मक, यक्षिणी- पद्मा सिद्धायिनी।

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Without Makeup........

Audi Shark - the flying car of the future...!!!!!


Audi Shark - the flying car of the future...!!!!!
Winner of the World Auto Design Contest 2009, the Italian competition Domus Academy which awards the most innovative in the automotive scene, the Audi Shark promises to be one of the most exciting cars of the future .
The designer Karim Doku inspired by motorcycles and airplanes to create a 3D model of a futuristic car that has no wheels and is capable of flying. Reinterpretation of the language Audi born a vehicle that lives up to its name. Their sharp edges, its structure, the matte finish and very gray make it resemble a shark, and Audi Shark aspires to be so on the road.
In subsequent appendages that look like a tail and looks that complement the environment while ensuring speed and stability, has other interesting features. Recalling his inspirations, the door not only differs from a plane that wraps itself around the cockpit and the two places where this unusual sports car put passengers in a very comfortable position.


It features underwater allied himself with a modern aesthetic where either the headlights or the rear, are composed of LED units mounted on plastic tubes. The end result is plain: a conceptual vehicle similar to a flying submarine.

In the vision of its creator would be a means of transporting high-power and advanced technology, able to overcome the limitations of ordinary cars, offering passengers “strong feelings and high security.”
This is a great example of futurism is not far from reality, which may one day reduce the risk of road accidents while providing a unique feeling of flying.

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